'एक अर्थपूर्ण जीवन मुसीबतों के बीच भी अत्यंत संतोषजनक हो सकता है'
-जर्मन फिलॉसफर नीत्शे
हमारी खुशी की कुंजी हमारे पास ही है. हमारी समस्याओं का समाधान हमारे पास ही है. इसके लिए कहीं और जाने की जरूरत नहीं है बल्कि खुद से खुद की पहचान कराने की जरूरत है. अपने अंदर और बाहर के तार को जोड़ने की जरूरत है. आइए Happy Science के जरिए मिलकर रास्तों को तय करते हैं, मुश्किलों को आसान बनाते हैं.
मनोविज्ञानी सिगमंड फ्रायड के बारे में कहा जाता है कि जब कोई उनके पास अपनी समस्या लेकर आता था, तो वह उससे कहते थे कि बताओ. जब वह बोलना शुरू करता, तो फ्रायड उसके पीछे जाकर बैठ जाते. कई लोग घंटों तक बोलते रहते. एक बार किसी ने उनसे पूछा कि वह इतनी देर तक कैसे बातें करते हैं? उन्होंने कहा मैं बातें नहीं करता, सिर्फ उस आदमी के मन में जो चल रहा है, उसे बाहर निकलने का मौका देता हूं. फ्रायड के इस कथन में कितनी सच्चाई है. हमारे पास अपनी बात कहने और उसे सुनाने के अवसर लगातार कम होते जा रहे हैं, क्योंकि कोई सुनने वाला नहीं...
आज दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग अकेलेपन की समस्या से जूझ रहे हैं. उन्हें 'वो' कोई नहीं मिल रहा है जिसे वे अपना मित्र, अपना सखा कह सकें. जिससे वे अपने मन की पीड़ा बेधड़क हो कर कह सकें, जिससे वे अपनी हर एक बात सुना सकें जिसे दबाकर रखे-रखे उनका मन ज्वालामुखी हुआ जा रहा है. उन्हें वो कोई एक शख्स चाहिए जिसके सामने वे खुलकर अपनी हर एक बात कह सकें.
ऐसा प्राय परिवारों के टूटने के कारण हो रहा है. संयुक्त परिवार टूट गए जिसमें पहले हर उम्र वर्ग के न जाने कितने भाई-बहन-कजन-चाचा-मौसा-मौसी-मामा-मामी होते थे जिनके पास लोग खुलकर एक्सप्रेस कर पाते थे खुद को. ये समस्या हमारे देश से पहले कई और मुल्कों में आई. जापान में परिवार लगभग टूट गए. वहां बहुत से युवा अब परिवार नहीं बसाना चाहते. बड़ी संख्या में लड़के-लड़कियां विवाह के इच्छुक नहीं. कुछ साल पहले जापान में अकेलेपन की समस्या का समाधान करने के लिए एक मंत्रालय बनाया गया था. ब्रिटेन में भी ऐसा मंत्रालय बनाया गया था. वहां 2017 में काक्स कमीशन ने अपने अध्ययन में पाया कि ब्रिटेन में 90 लाख के आसपास लोग अकेलेपन की समस्या से पीड़ित हैं. इन्हीं हालातों से जूझ रहे चीन की सरकार अब चाहती है कि दंपती तीन बच्चे पैदा करें लेकिन लोग अब इसके लिए तैयार नहीं हैं.
परिवार नामक संस्था को गंवा चुके पश्चिमी देश परिवार सप्ताह मना रहे हैं. जापान में अकेलेपन से ग्रस्त युवा बड़ी संख्या में आत्महत्या कर रहे हैं. भारत में अकेले लोगों की संख्या 6 प्रतिशत बताई जाती है. ये संख्या करोड़ों में है. इनमें से कई गंभीर मानसिक बीमारियों की चपेट में हैं. एक बच्चे की रणनीति से नई पीढ़ी खुद ही कई तरह के रिश्तों से मुक्त होती चली जा रही है तो आने वाले वक्त में आपके आसपास अपनों की कमी और भी बढ़ती जाएगी.
हालात ऐसे हो गए हैं कि लोगों को किराए पर उन लोगों को हायर करना पड़ रहा है जो अकेलेपन से मुक्ति दिला सकें. पिछले दिनों जापान से आई यह खबर वायरल हुई कि शोजी मोरीमोटो नामक व्यक्ति पैसे लेकर लोगों के साथ समय बिताता है, उनसे बात करता है, उनके संग घूमता है. उसका कहना है कि जिन लोगों के साथ वह समय बिताता है, वे बार-बार उसे बुलाते हैं, क्योंकि उनसे बातचीत करने वाला कोई नहीं.
भारत में भी साइकोलॉजी काउंसलर बिजनेस यानी ऐसे लोग जो डिप्रेशन, एंजाइटी से जूझ रहे लोगों की बातें सुनते हैं और उनसे हर घंटे 500 से 5000 रुपये तक की फीस वसूलते हैं का करियर काफी चमक रहा है. ये सेवा लेने वाले बड़े-बड़े व्यापारी, कॉरपोरेट अफसर, सिनेमा स्टार, मॉडल जैसे सफल लोग हैं. चूंकी सबकी जिंदगी में काम का तनाव, संयुक्त परिवारों के टूटने और एकल परिवारों में भी तलाक के बाद का अकेलापन आता जा रहा है तो ऐसे में इस तरह के साइकॉलजी एक्सपर्ट्स की डिमांड भी बढ़ती जा रही है. ये सब क्यों हो रहा है क्योंकि हम अपने लोगों को, अपने रिश्तों को संजोए रखने में विफल साबित हुए हैं. लेकिन अगर वक्त बदल ही गया है तो दूसरों में नहीं तो क्या हम खुद में अपना वो दोस्त तलाशने की कोशिश नहीं कर सकते?
आखिर एक अच्छा दोस्त क्या होता है? वह इंसान जो आपको अच्छे-बुरे का भेद समझाए और जो आपके सुख-दुख के हालात में आपके साथ खड़ा हो. आज हमारे मोबाइल फोन में ढेर सारे कॉन्टैक्ट और सोशल मीडिया फ्रेंड लिस्ट में ढेर सारे नाम भरे हुए हैं लेकिन आप सोचकर देखिए कि मुसीबत के पलों में उनमें से कितने लोग आपके साथ खड़े होंगे? आध्यात्मिक गुरु ओशो कहते हैं- आपका अगर सबसे सच्चा दोस्त कोई है तो वह हैं खुद आप.
आप अपनी हर बात भले दुनिया से न शेयर करते हों लेकिन खुद से कुछ छुपाना किसी भी इंसान के लिए संभव नहीं है. इसलिए अगर आपके बारे में कोई सबसे सच्चा फीडबैक दे सकता है तो वो शख्स इस धरती पर कोई और नहीं आप खुद हैं. इसलिए खुद से दोस्ती कीजिए. कुछ पल रोज खुद के साथ बिताइए. अपना हाल पूछिए, समझिए. खुद का आकलन कीजिए. अपनी समस्याओं-खुशियों का अता-पता लीजिए. उनके समाधान पर विचार कीजिए. अपनी खुशियों को एंजॉय कीजिए.
फिर यकीन कीजिए आपको दुनिया भी पहले से बेहतर लगने लगेगी और बाकी लोगों से भी आपका जुड़ाव बढ़ जाएगा. दूसरे लोगों में सखा ढूंढने से पहले खुद को सखा बनाइए, प्रकृति की हर एक चीज को अपना दोस्त समझिए. फिर यकीन मानिए ये सूरज-चांद, खुला आकाश, पेड़-पौधे, बारिश, ओस... ब्रम्हांड की हर एक चीज आपको दोस्ती का एहसास कराने लगेगी. आपके जीवन जीने का नजरिया बदलने लगेगा और हर तरफ सखा ही सखा महसूस होने लगेंगे.
ओरिजिन ऑफ स्पेशिज में 'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट...' की अपनी थ्योरी लिखते हुए डार्विन लिखते हैं- 'हर प्राणी को खाने के लिए भोजन व ...