Monday 24 October 2022

कुरुक्षेत्र के द्वंद और जीवन के महाभारत...

मनुष्य का जीवन हर काल में द्वंदों और अंतरद्वंदों से भरा हुआ है. आप भीड़ के साथ चलते हैं या इन द्वंदों के काल में अलग राह अपनाते हैं यही आपके व्यक्तित्व का निर्माण करता है. राम, कृष्ण, बुद्ध, गांधी ये भी अपने आस-पास के लोगों की तरह सामान्य जीवन जी सकते थे वो आसान था लेकिन इन्होंने संघर्ष का रास्ता चुनकर खुद को भीड़ से अलग किया. ऐसे पथ पर मुश्किलें भी बहुत आती हैं. लेकिन, देशकाल की रस्साकशी और समाज के द्वंद के बाद कुछ भी छिपा नहीं रहता. हिसाब हर चीज का होता है. महाभारत को ही लें.

महाभारत कुरुक्षेत्र में लड़ा गया केवल एक युद्ध नहीं था. जिसे केवल दो सेनाओं और योद्धाओं ने लड़ा हो, बल्कि ये वो महासंग्राम था जिसे उस समय उपस्थित हर एक व्यक्ति ने अपने अंतरद्वंद के रूप में, स्वयं से ही लड़ा था. कौन किसके पक्ष में खड़ा हुआ, इसका निर्धारण भी किसी और ने नहीं बल्कि स्वयं उसी की इच्छाओं, कुंठाओं, महत्वाकांक्षाओं और मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था ने किया था. युद्ध के पहले भी बहुत कुछ ऐसा घटा था, जिसके परिणामस्वरूप ये भीषण संग्राम हुआ, जिसे धर्मयुद्ध का नाम दिया गया.

धर्मयुद्ध धन-संपत्ति या सत्तात्मक अधिकारों के लिए नहीं होते, बल्कि दो मानसिकताओं के मध्य होते हैं. मानवीय मूल्यों और महत्वकांक्षाओं के मध्य होते हैं. महाभारत प्रतिक्रिया और प्रतिशोधों की ऐसी शृंखला है जिसमें हर बार कुछ नई कड़ियां जुड़ती रहीं. कारण कुछ भी रहे हों, परंतु इसे रोकने में कोई समर्थ नहीं दिखा. एक ओर स्वयं के बनाए घेरों में कैद भीष्म, द्रोण जैसे शूरवीरों की साम्थर्य बेबस दिखी तो विदूर का नीतिज्ञान राज परिवार की निजी महत्वाकांक्षाओं के नीचे दबकर रह जाता है. जिनमें अन्याय को रोकने की साम्थर्य थी, वो मौन दर्शक बने रहे. और अपनी कमियां ये कहकर छुपाते रहे कि शक्ति और सत्ता जो करे वही धर्म है... मगर समय मौन नहीं रहता.

द्रौपदी के अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर युद्धभूमि में खोजे गये. गांधारी की आंखों पर बंधी पट्टी का परिणाम कुरुवंश के पतन के रूप में सामने आता है. महाभारत के अधिकांश पात्र, स्वयं के अंतर्विरोधों से जूझते और मानवीय कमजोरियों को ढोते प्रतीत होते हैं. और कुछ वैचारिक उत्कृष्टता द्वारा इनसे पार पाने में संघर्षरत्त नजर आते हैं. उनमें सिर्फ श्रीकृष्ण के रूप में ही एक महामानव नजर आता है. जो प्रेम का पाठ पढ़ाते हुए दीन-दुखियों का उद्धार करता है. निरंकुश आतताइयों का विनाश करता है. उसे न सत्ता का मोह है, न कोई आसक्ति. और जीवन का उद्देश्य केवल मानव मात्र का कल्याण करना. धर्म के निमित्त शक्ति और साम्थर्य का इससे सुंदर उपयोग और क्या हो सकता है.



असल में मानव कमजोरियों पर विजय की घोषणा ही देवत्व है. श्रीकृष्ण का संपूर्ण जीवन यही कहता है कि वो धर्म, वो जड़ता, वो ज्ञान... वो सब कुछ त्याग दो जो मनुष्य के मनुष्य बने रहने में बाधक हो, अनिष्टकारी हो. केवल प्रेम का वरण करो. उससे अधिक सुंदर और सच्ची कोई वस्तु इस संसार में दूसरी नहीं है.

आज आदमी छोटी-छोटी महाभारतें अपने घरों में, जीवन में सहता और देखता आ रहा है. इस टूटन, इस विखराव का असर उसके जीवन में साफ दिखाई देता है. इन सब द्वंदों के पार जब जीवन की सार्थकता और व्यर्थता का आकलन होता है तो आप किस पक्ष में खड़े होंगे ये द्वंद के दौर में आपके चुने हुए विकल्प तय करते हैं. सच का पथ आसान नहीं है लेकिन आसान पथ चुनना भी क्यों है? 

जयशंकर प्रसाद की पंक्तियों के साथ इस लेख को विराम देता हूं..

'वह पथ क्या, पथिक कुशलता क्या,

जिस पथ पर बिखरे शूल न हों, 

नाविक की धैर्य परीक्षा क्या, 

जब धाराएं प्रतिकूल न हों!'

Saturday 22 October 2022

'अपनी जमीन खोदें ,खजाना हमेशा वहीं मिलेगा'

ओशो अक्सर एक कथा सुनाया करते थे. मतलब सरल है लेकिन संदेश गूढ़ है...जीवन में जिसने इसे समझ लिया उसे सुख के लिए कहीं और भटकने की जरूरत नहीं होगी.

'एक राजधानी में एक भिखारी एक सड़क के किनारे बैठकर बीस-पच्चीस वर्षों तक भीख मांगता रहा। फिर मौत आ गयी, फिर मर गया। जीवन भर यही कामना की कि मैं भी सम्राट हो जाऊं। कौन भिखारी ऐसा है, जो सम्राट होने की कामना नहीं करता? जीवन भर हाथ फैलाये खड़ा रहा रास्तों पर।

लेकिन हाथ फैलाकर, एक-एक पैसा मांगकर कभी कोई सम्राट हुआ है? मांगने वाला कभी सम्राट हुआ है? मांगने की आदत जितनी बढ़ती है, उतना ही बड़ा भिखारी हो जाता है। सम्राट कैसे हो जायेगा? जो पच्चीस वर्ष पहले छोटा भिखारी था, पच्चीस वर्ष बाद पूरे नगर में प्रसिद्ध भिखारी हो गया था, लेकिन सम्राट नहीं हुआ था। फिर मौत आ गयी। मौत कोई फिक्र नहीं करती। सम्राटों को भी आ जाती है, भिखारियों को भी आ जाती है। और सच्चाई शायद यही है कि सम्राट थोड़े बड़े भिखारी होते हैं, भिखारी जरा छोटे सम्राट होते हैं। और क्या फर्क होता होगा!

वह मर गया भिखारी तो गांव के लोगों ने उसकी लाश को उठाकर फिकवा दिया। फिर उन्हें लगा कि पच्चीस वर्ष एक ही जगह बैठकर भीख मांगता रहा। सब जगह गंदी हो गयी। गंदे चीथड़े फैला दिये हैं। टीन-टप्पर, बर्तन-भांडे फैला दिये हैं। सब फिकवा दिया। फिर किसी को ख्याल आया कि पच्चीस वर्ष में जमीन भी गंदी कर दी होगी। थोड़ी जमीन उखाड़कर थोड़ी मिट्टी साफ कर दें। ऐसा ही सब व्यवहार करते हैं, मर गये आदमी के साथ। भिखारियों के साथ ही करते हों, ऐसा नहीं। जिसको प्रेमी कहते हैं, उनके साथ भी यही व्यवहार होता है। उखाड़ दी, थोड़ी मिट्टी भी खोद डाली।

मिट्टी खोदी तो नगर दंग रह गया। भीड़ लग गयी। सारा नगर वहां इकट्टा हो गया। वह भिखारी जिस जगह बैठा था, वहां बड़े खजाने गड़े हुए थे। सब कहने लगे, कैसा पागल था! मर गया पागल, भीख मांगते-मांगते! जिस जमीन पर बैठा था, वहां बड़े हंडे गड़े हुए थे, जिनमें बहुमूल्य हीरे-जवाहरात थे, स्वर्ण अशर्फियां थीं! वह सम्राट हो सकता था, लेकिन उसने वह जमीन न खोदी, जिस पर वह बैठा हुआ था! वह उन लोगों की तरफ हाथ पसारे रहा, जो खुद ही भिखारी थे, जो खुद ही दूसरों से मांग-मांगकर ला रहे थे! वे भी अपनी जमीन नहीं खोदे होंगे। उसने भी अपनी जमीन नहीं खोदी! फिर गांव के लोग कहने लगे, बड़ा अभागा था!

मैं भी उस गांव में गया था। मैं भी उस भीड़ में खड़ा था। मैंने लोगों से कहा, उस अभागे की फिक्र छोड़ो। दौड़ो अपने घर, अपनी जमीन तुम खोदो। कहीं वहां कोई खजाना तो नहीं? पता नहीं, उस गांव के लोगों ने सुना कि नहीं! आपसे भी यही कहता हूं-अपनी जमीन खोदो, जहां खड़े हैं, वहीं खोद लें। मैं कहता हूं, वहां खजाना हमेशा है!

लेकिन हम सब भिखारी हैं और कहीं मांग रहे हैं! प्रेम के बड़े खजाने भीतर हैं, लेकिन हम दूसरों से मांग रहे हैं कि हमें प्रेम दो! पत्नी पति से मांग रही है, मित्र-मित्र से मांग रहा है कि हमें प्रेम दो! जिनके पास खुद ही नहीं है, वे खुद दूसरों से मांग रहे हैं, कि हमें प्रेम दो! हम उनसे मांग रहे हैं! भिखारी भिखारियों से मांग रहे हैं! इसलिए दुनिया बड़ी बुरी हो गयी है। लेकिन अपनी जमीन पर, जहां हम खड़े हैं, कोई खोदने की फिक्र नहीं करता।

वह कैसे खोदा जा सकता है, वह थोड़ी-सी बात मैंने कही हैं। वहां खोदें, वहां बहुत खजाना है और प्रेम का खजाना खोदते-खोदते ही एक दिन आदमी परमात्मा के खजाने तक पहुंच जाता है। 

और कोई रास्ता न कभी था, न है और न हो सकता है.'

Monday 10 October 2022

दरिया के जैसे लहरों में बहना सीखो

 

दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो, तो ज़िंदा हो तुम

नज़र में ख्वाबों की बिजलियाँ लेके चल रहे हो, तो ज़िंदा हो तुम
हवा के झोकों जैसे आज़ाद रहना सीखो
तुम एक दरियाँ के जैसे लहरों में बहना सीखो
हर एक लम्हें से तुम मिलो खोले अपनी बाहें
हर एक पल एक नया समा देखे यह निगाहें
जो अपनी आँखों में हैरानियाँ लेके चल रहे हो, तो ज़िंदा हो तुम
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो, तो ज़िंदा हो तुम

Friday 7 October 2022

सफल होना है तो तपना तो होगा...


याद रखना अगर कामयाबी हासिल करनी है तो तपना तो होगा ही. एक कहानी सुनाता हूं. पुरानी है लेकिन बहुत काम की है-

एक मूर्तिकार को मूर्ति बनाने का ऑर्डर मिला. नदी किनारे से वह दो पत्थरों को उठा लाया. पहले पत्थर को तराशने के लिए जैसे ही उसने हथौड़ी-छेनी से पहला वार किया. पत्थर से आवाज आई- रोको. बहुत दर्द हो रहा है. छोड़ दो मुझे. मूर्तिकार ने छोड़ दिया.

मूर्तिकार ने दूसरे पत्थर को उठाया और लग गया काम पर. कुछ देर काम करने के बाद उसे याद आया तो उसने पत्थर से पूछा- क्या तुम्हें हथौड़ी-छेनी के चोट से दर्द नहीं हो रहा. पत्थर से आवाज आई- दर्द तो बहुत हो रहा है लेकिन कोई बात नहीं. जरूरी है. मूर्तिकार अपने काम में लग गया और उसे एक भगवान की सुंदर मूर्ति में बदल दिया.

अगले दिन मंदिर से एक आदमी आया और उस मूर्ति को ले जाने लगा. तभी उसकी नजर पास पड़े दूसरे पत्थर पर पड़ी. वो बोला कि क्या मैं इस मूर्ति के साथ इस पत्थर को भी ले जा सकता हूं. मूर्तिकार बोला- हां, मेरे का तो है नहीं. ले जाइए.

मूर्ति और पत्थर दोनों मंदिर में पहुंचे. मूर्ति पूरे सम्मान के साथ स्थापित हो गई जिसे रोज लोग पूजने आते थे. दूसरी पत्थर वहीं नारियल फोड़ने के लिए लगा दी गई. लोग आते एक को पूजते, दूसरे पर नारियल फोड़ते. जिसने खुद को खपाया और जिसने खुद को तपने से बचा लिया उन दोनों पत्थरों की नियति में फर्क साफ हो गया था.

इसलिए कहा जाता है कि कुछ बनना है तो तपना तो होगा. इसलिए जीवन में कभी संघर्षों से मत भागो.

आपकी लड़ाई खुद आप से है...

...जब भी बिखरा हूं

दूगनी रफ्तार से निखरा हूं

वक्त से सीखी है मैंने

वक्त की धार को अपनी ताकत बनाना...

ओशो कहते हैं- जीवन में अधिकांश दुखों का कारण ही है कि इंसान खुशी की तलाश खुद से बाहर करता है. अर्थात दूसरों में. दूसरों से उम्मीदें पालता है और फिर जब ये उम्मीदें टूटती हैं तो दुखों से घिर जाता है.

अर्थात, खुशी की तलाश खुद में करनी है. खुद से प्यार करना सीखना है. अगर जग को जीतना है, आनंद को पाना है तो सबसे पहले अपने अंदर झांकना होगा. बदलावों की शुरुआत खुद से करनी होगी... और कहते हैं न कि आपका जीवन वहां से शुरू होता है जहां से आपका डर समाप्त हो जाता है.

आपकी लड़ाई खुद से है. किसी और तुलना में न तो अपना वक्त बर्बाद करें और न ही किसी और को सफाई देने में अपनी एनर्जी लगाएं. ओशो कहते हैं कि आप लोगों को सफाई देने में और अपनी स्थिति स्पष्ट करने में अपना समय बर्बाद न करें क्योंकि लोग वही सुनते हैं जो सुनना चाहते हैं.

आपको किसी के साथ किसी भी तरह की प्रतियोगिता करने की जरूरत नहीं है, आप जैसे भी हैं अच्छे हैं. खुद को स्वीकार कीजिए और प्रगति के लिए खुद पर मेहनत करना शुरू कर दीजिए. आपकी उम्र क्या है, आपकी आर्थिक स्थिति क्या है ये मायने नहीं रखता. आपको क्या हासिल करना है ये मायने रखता है. उसपर फोकस कीजिए बाकी चीजें मायने नहीं रखतीं.

सीखने का प्रोसेस भी यही है कि खूब प्रयास करो, खूब गलतियां करो. बस एक बात हमेशा याद रखना कि दोबारा से वही गलती कभी मत करना और फिर देखना तुम कामयाबी की ओर बढ़ रहे होगे. अगर आप सत्य के साथ हैं और आपने यह निर्णय कर लिया है तो याद रखना इस दुनिया में सबसे बड़ी ताकत यानी परमात्मा का साथ तुम्हारे साथ है और आप अकेले नहीं हो.

महात्मा बुद्ध कहते हैं- मनुष्य के दुखों का कारण ही है दूसरों के जीवन से तुलना. आपको अगर जीवन में आगे बढ़ना है तो खुद पर फोकस करो. खुद पर काम करो. गौतम को बुद्ध बनना था तो गौतम ने पूरी सेना लेकर कूच नहीं किया. एकान्त में राजपाठ छोड़कर खुद को जीतने निकल पड़े. एकान्त में सालों तक खुद पर काम किया और बुद्धत्व को प्राप्त किया.

Saturday 1 October 2022

बड़ी मंजिल के राहगीर, छोटे दिल नहीं रखते...

गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- धर्मक्षेत्रे, कर्मक्षेत्रे, समावेत: युयुत्सव: ! मतलब ये संसार महाभारत के कुरुक्षेत्र की भांति युद्ध का मैदान है. यहां कर्मयुद्ध तो करना ही पड़ेगा. आप चाहें या नहीं. और कोई चारा ही नहीं है. यह दुनिया ऐसी ही है. यहां कमजोरी अभिशाप है. प्रकृति भी कमजोर जीवों को जिलाए रखने के पक्ष में नहीं होती. चार्ल्स डार्विन का सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट का सिद्धांत भी यही कहता है.


सफलता का मंत्र यह कहता है कि असाधारण बनने के लिए आपको साधारण शब्द से खुद को अलग खड़ा करना होगा. देखा जाए तो जिंदगी एक रेस है, एक गेम है और हर गेम एक रिस्क है, लेकिन कहते हैं न कि रिस्क का अपना ही मजा है. आप मंजिल पर तभी पहुचेंगे जब घर से निकलेंगे. कहीं पहुंचने के लिए कहीं से निकलना सबसे पहला और जरूरी काम है. लेकिन आपका ये सफर भी यादगार हो इसके लिए यादगार माहौल बनाकर रखना होगा. इसके लिए चुनौतियों को उस अंदाज में हैंडल करना होगा कि सबसे अलग स्वाद दें.

अब सवाल ये है कि जब युद्ध के मैदान में उतरना ही है तो क्यों न अपने अंदर योद्धा की मेंटलिटी तैयार कर ली जाए. इसके लिए सब कुछ आपके एटीट्यूड पर निर्भर करेगा. जब आप नई राह पर आगे बढ़ने का फैसला कर लेंगे तो मुश्किलें तो आएंगी हीं. दुनिया का कोई भी सफल आदमी ऐसा नहीं है जिसकी राह में मुश्किलें न आई हों. बस विजेता वही होते हैं जो मुश्किलों की इस दरिया के पार पहुंचने तक अपना धैर्य नहीं खोते.

असल टैलेंट है इस दुनिया में खुद को शांत बनाए रखना, किसी भी परिस्थिति में. मशहूर उद्योगपति और मोटिवेटर जे. सी. पेनी लिखते हैं- 'मेरी जिंदगी में जितनी भी समस्याएं आईं, मैं उन सभी के लिए कृतज्ञ हूं. जब मैंने उनमें से प्रत्येक पर विजय पाई तो हर जीत के साथ मैं ज्यादा शक्तिशाली बना. और आने वाली समस्याओं से मुकाबला करने में ज्यादा सक्षम बना. मैंने जो भी प्रगति की है, अपनी मुश्किलों की बदौलत की है.'  

जब मुश्किलों का आना तय ही है तो फिर क्यों न इन मुश्किलों को सिंपल सिस्टम में ला दिया जाए. मुश्किलों को अपनी राह का रोड़ा न बनने दें. जब ये आएं तो शांत चित से उनका स्वागत करें, उन्हें समझें और फिर उनसे पार पाने के लिए जो जरूरी हो वो करें. वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता मन में इस बात का हमेशा स्मरण रखें. चुनौतियों को कई हिस्सों में बांट लें और एक-एक कर उन्हें निपटाते रहें. एक दिन सब ठीक होगा.

याद रखें- सफलता एक युद्ध है. यह आसान नहीं है. अगर आसान होता तो हर कोई नहीं कर लेता. 

लाखों-करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत मोटिवेशनल वक्ता और लेखक सोनू शर्मा कहते हैं- तीन चीजें आपका आने वाला भविष्य तय करेंगी-

1- कौन सी किताबें पढ़ते हैं

2- हमारी आंखें क्या देखती हैं

3- किन लोगों के साथ रहते हैं

लाइफ मैनेजमेंट का मंत्र याद रखें- सजग रहें, अपने सपनों की जिम्मेदारी लें. परेशानी आए तो इमानदार रहें. धन आ जाए तो सरल रहें. अधिकार मिलने पर विनम्र रहें और क्रोध आने पर शांत रहें. लेकिन अपना एटीट्यूड हमेशा बुलंदी वाला रखें. आगे बढ़ते रहें. जब भी राह मुश्किल लगे और दुनिया साथ दे न दे. तो ये लाइनें गुनगुनाते रहें... 

'इश्क में जीत कर आने के लिए काफी हूं,

मैं अकेला ही जमाने के लिए काफी हूं...

मैंने उसको

जब-जब देखा,

लोहा देखा,

लोहे जैसा

तपते देखा

गलते देखा

ढलते देखा

मैंने उसको

गोली जैसा

चलते देखा।

सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट...

  ओरिजिन ऑफ स्पेशिज में 'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट...' की अपनी थ्योरी लिखते हुए डार्विन लिखते हैं- 'हर प्राणी को खाने के लिए भोजन व ...