जीवन एक सफर है और हममें से हर किसी की कहानी एक सफरनामा. हममें से हर कोई कहीं न कहीं पहुंचने के सफर पर है. किसी की मंजिल कुछ है तो किसी की मंजिल कुछ और. लेकिन सफर सबके हिस्से में बराबर है. खुशियां हर किसी के हिस्से में हो या न हो लेकिन मुश्किलें हर किसी के हिस्से में बराबर हैं.
ये जो गहरे सन्नाटे हैं,
वक्त ने सबको ही बांटे हैं,
थोड़ा गम है सबका किस्सा,
थोड़ी धूप है सबका हिस्सा...
मुश्किलें हर किसी के हिस्से में हैं. भले ही वे अलग-अलग रूपों में हों या जीवन के अलग-अलग फेज में हमें वो परेशान करती हैं. लेकिन मुश्किलों से जिंदगी रुकती तो नहीं है. हम सबको जीवन में कहीं न कहीं पहुंचना है. कुछ नए इरादे, कुछ नए मकसद हासिल करने हैं और जीवन को बेहतरीन पल देने हैं. कुछ न कुछ नया हासिल करने की तमन्ना हम सबको हमेशा सफर में बनाए रखती है.
सोचिए कि आज अगर हम जहां हैं अगर वही पड़े रहें तो क्या नजारा होगा. जीवन का कोई मकसद ही नहीं रह जाएगा. लाइफ कितनी बोरिंग हो जाएगी न? इसीलिए हम सबको समय-समय पर अपने कंफर्ट जोन को तोड़कर आगे बढ़ना जरूरी है. लेकिन ये कंफर्ट जोन छोड़ना इतना आसान नहीं होता.
सामान्य रूप में चल रहे जीवन के ढर्रे से अलग कुछ भी करना हो तो उसके लिए खुद को झटके देने होते हैं. लेकिन झटके वाला वह कदम ही हमारे सफलता के सफर को आरंभ करता है. क्योंकि, अगर कहीं जाना है तो उसके लिए कहीं न कहीं से शुरुआत करनी पड़ती है. सफलता की ओर पहला कदम इसलिए मुश्किल होता है, क्योंकि इसके पूर्व हमने कभी वह कदम नहीं बढ़ाया होता है.
मंजिल हम तक चल कर नहीं आती है, हमें मंजिल की ओर जाना पड़ता है. एक ही स्थान पर रहने से हम सफलता नहीं हासिल कर सकते हैं. सफलता की मंजिल की ओर एक कदम बढ़ा कर शुरुआत तो करें, और देखें कैसे आप धीरे–धीरे अपनी मंजिल के करीब पहुंचते जाएंगे.
इस सफर में सबके हिस्से में धूप-छांव बराबर है. लेकिन जिंदगी कहीं रुकने का नाम तो नहीं ही है. इसलिए हम सब अपने हालात और सपनों के मुताबिक अपने-अपने रफ्तार में चलते रहते हैं. परिवर्तनों से काहे का डर. अगर हम परिवर्तनों से डरने लगें तो हमारे लिए कोई भी नया कदम उठाना मुश्किल हो जाएगा. कहते हैं कि बेहतरीन दिनों के लिए मुश्किलों दिनों से भी जूझना पड़ता है. कहीं पहुंचने के लिए कहीं से निकलना पड़ता है. जीवन में कंफर्ट जोन तोड़ना क्यों जरूरी है इसे इस कहानी से समझिए.
यह कहानी है गिद्धों के एक समूह की. एक बार गिद्धों का एक झुण्ड उड़ता हुआ एक टापू पर पहुंच गया. यह टापू समुद्र के एकदम बीचों-बीच में था. इस टापू पर ढेर सारी मछलियां, मेंढक और समुद्री जीव थे. ऐसे में गिद्धों के खाने की भी कोई कमी नहीं थी. इसके साथ ही गिद्धों का शिकार करने वाला कोई जंगली जानवर भी यहां मौजूद नहीं था. इस टापू पर पहुंचकर गिद्ध बेहद खुश थे. उन्होंने इतना सुखमय जीवन कभी नहीं देखा था. इस झुण्ड में ज्यादातर गिद्ध युवा थे. उन सभी ने सोचा कि वो यहीं रहेंगे और इस आरामदायक जीवन को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे.
इन युवा गिद्धों के बीच एक बूढ़ा गिद्ध भी मौजूद था. युवा गिद्धों की बात सुनकर वह चिंता में पड़ गया. उसने सोचा कि आरामदायक जीवन इनके जीवन पर क्या असर डालेगा? ये सभी जीवन का वास्तविक अर्थ नहीं समझ पाएंगे. साथ ही जब तक इन्हें चुनौती का सामना नहीं करना पड़ेगा तब तक ये मुकाबला करना कैसे सीखेंगे. काफी देर सोच-विचार करने के बाद एक दिन बूढ़े गिद्ध ने सभी गिद्धों की सभा बुलाई. उसने अपनी चिंता सभी को बताई. उसने कहा कि इस टापू पर हम सभी को बहुत दिन हो गए अब हमें वापस उसी जंगल में चलना चाहिए. बिना चुनौती के हम सभी अपना जीवन जी रहे हैं. क्योंकि बिना चुनौतियों के हम मुसीबतों के लिए तैयार नहीं होंगे.
हालांकि, युवा गिद्धों ने यह अनसुनी कर दी. उन सभी को लगा कि गिद्ध अब बुढ्ढा हो गया और बहकी-बहकी बातें कर रहा है. उन सभी ने आराम की जिंदगी छोड़कर वहां जाने से मना कर दिया. फिर भी बुढ़े गिद्ध ने सभी को समझाने की कोशिश की. लेकिन कोई भी नहीं माना. बूढ़े गिद्ध ने कहा कि तुम सभी उड़ना भूल चुके हो. लेकिन फिर भी किसी ने बूढ़े गिद्ध की बात नहीं मानी. ऐसे में सभी को छोड़कर बूढ़ा गिद्ध अकेला ही वहां से चला गया.
कुछ महीने बाद वो बूढ़ा गिद्ध वापस उस टापू पर युवा गिद्धों की तलाश में गया. टापू पर पहुंचकर वह अचंभित रह गया. वहां हर तरफ गिद्धों की लाशें पड़ी थीं. वहीं, कई गिद्ध तो ऐसे भी थे जो लहू-लुहान और घायल पड़े हुए थे. तभी बूढ़े गिद्ध ने एक गिद्ध से पूछा, “यह सब कैसे हुआ और यह हालत कैसे हुई?”.
उस गिद्ध ने बताया कि हम सभी मजे से जिंदगी जी रहे थे लेकिन एक दिन यहां एक जहाज आया टापू पर चीते छोड़ गया. कुछ दिन तक तो चीते ने कुछ नहीं किया. लेकिन हम उड़ना भूल चुके थे. साथ ही हमारे पंजे और नाखुन भी कमजोर हो गए थे. हम किसी पर भी हमला भी नहीं कर सकते थे. अपना बचाव भी नहीं कर पा रहे थे. ऐसे में चीतों ने हमें एक-एक कर मारकर खाना शुरू कर दिया. इसी कारण हमारा यह हाल हो गया.
इस कहानी से क्या सीख मिलती है? यही कि हमें समय-समय पर जीवन में हमारा कम्फर्ट जोन छोड़कर बाहर आना जरूरी होता है. अगर ऐसा नहीं किया जाए तो हमारे कौशल में जंग लगने में देर नहीं लगती है.
...सफर की हद है वहां तक कि कुछ निशां रहे,
चले चलो के जहां तक ये आसमां रहे,
ये क्या कि उठाए कदम और आ गई मंज़िल,
मजा तो तब है, के पैरो में कुछ थकान रहे...