हममें से 90 फीसदी लोगों की जिंदगी घड़ी की सुइयों के हिसाब से चलती है. खासकर शहरों में रहने वाले लोगों, खासकर कॉरपोरेट जिंदगी का प्रेशर जी रहे लोगों की. हम हर सुबह अलार्म की शोर के साथ जगते हैं, दिनभर भागदौड़ वाली जिंदगी जीते हैं और फिर रात को अगली सुबह का अलार्म सेट करने के साथ अपने दिन को विराम देते हैं. लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि इस भागदौड़ वाली रूटीन में आपके लिए ठहरकर जिंदगी को देखने का कोई मोमेंट निकल पा रहा है क्या?
आखिर इतनी भागदौड़ क्यों? क्या ईश्वर ने आपको जिंदगी ऐसे मशीन बनकर जीने के लिए दी है? क्या आप जीवन में सुकून के कुछ पल निकाल पा रहे हैं, क्या आप जीवन में कुछ पल ठहरकर खुद के बारे में सोच पा रहे हैं? ये जानना उतना ही जरूरी है जितना आपका रोज अपनी गाड़ी में चक्के की हवा, तेल, गैस, इंजन ऑयल चेक करना... तभी आप अगली सुबह के लिए खुद को तैयार कर पाएंगे. और ये तभी संभव होगा जब आप रोज कुछ पल खुद को ठहराकर खुद से कह पाएंगे- जस्ट चिल...यानी बस कुछ पल ठहर जा भाई.
आप ये सोच रहे होंगे कि जीवन में इतने काम है, कैसे खुद को ठहरा लें, कैसे रुक जाएं? लेकिन आपके काम की एक सीमा तो होनी चाहिए न. आप जो काम कर रहे हैं वे अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए ही कर रहे हैं न? न कि जीवन को काम पर खर्च करने का ठेका लिया है आपने. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि काम भी जरूरी है लेकिन भागदौड़ ही सबकुछ तो नहीं है. जीवन को जीया नहीं तो फिर आपके हाथ आएगा क्या?
आध्यात्मिक गुरु ओशो अपने प्रवचनों के दौरान अक्सर एक किस्सा सुनाया करते थे... ये किस्सा था विश्वविजेता सिकंदर के आखिरी क्षणों का...
'सिकंदर मरा और जिस राजधानी में मरा, उसकी अरथी निकाली गई तो मरने के पहले उसने अपने मित्रों से कहा, मेरे दोनों हाथ अरथी के बाहर लटके रहने देना. मित्रों ने कहा - 'पागल हो गए हैं आप? अरथी के भीतर हाथ होते हैं सदा, बाहर नहीं होते."
सिकंदर ने कहा - 'मेरी इतनी इच्छा पूरी कर देना हालांकि जीवन में मेरी कोई इच्छा पूरी नहीं हो पाई है. मर कर तुम कम से कम मेरी इतनी इच्छा पूरी कर देना कि मेरे दोनों हाथ बाहर लटके रहने देना."
मरे हुए आदमी की इच्छा पूरी करनी पड़ी. उसके दोनों हाथ बाहर लटके हुए थे. जब उसकी अरथी निकली तो लाखों लोग देखने आए थे. हर आदमी यही पूछने लगा कि अरथी के बाहर हाथ क्यों लटके हैं? कोई भूल-चूक हो गई है. हर आदमी यही पूछ रहा था. सांझ होते-होते लोगों को पता चला, भूल नहीं हुई है. सिकंदर ने मरने के पहले कहा था कि मेरा हाथ बाहर लटके रहने देना. मैं लोगों को दिखा देना चाहता हूं कि मैं भी खाली हाथ जा रहा हूं. जो पाने की कोशिश की थी, वह नहीं पा सका हूं. मेरे दोनों हाथ खाली हैं, यह लोग देख लें. कोई नहीं पा सका. इस दुनिया में सब खाली हाथ आते हैं और खाली हाथ ही जाते हैं.
जीवन में पैसे कमाने की भी एक सीमा है. पैसा जिंदगी के लिए सबसे जरूरी है लेकिन वही सबकुछ नहीं है. दुनिया में कई लोग ऐसे हैं जो अरबों रुपये कमा चुके हैं लेकिन आनंद और चैन की जिंदगी पाने के लिए तरस है. शहरी जिंदगी में तनाव, डिप्रेशन, इंजाइटी जैसी नई तरह बीमारियां लोगों का जीवन छीन रही हैं. लाखों लोग इनके शिकार हो रहे हैं, कोई इलाज में अपनी जिंदगी खपा रहा है तो कोई परेशान होकर आत्महत्या के रास्ते पर बढ़ जाता है. इन सब स्थितियों से पार पाने के लिए अध्यात्म की ताकत जरूरी है. जीवन में संतुलन के महत्व को समझना और अपनाना जरूरी है.
इसलिए जीवन में चुनौतियों और लक्ष्यों के साथ-साथ सुकून और आनंद को भी सहज भाव में लेना जरूरी है. भगवदगीता में श्रीकृष्ण कहते हैं- जीवन विपरीत ध्रुवों का संगम है, अपोजिट पोलेरेटीज का. यहां प्रत्येक चीज अपने विपरीत के साथ मौजूद है; अन्यथा संभव भी नहीं है. अंधेरा है, तो साथ में जुड़ा हुआ प्रकाश है. जन्म है, तो साथ में जुड़ी हुई मृत्यु है. जो विपरीत हैं, वे सदा साथ मौजूद हैं. सबको सहज रूप में जीना ही जीवन का सच्चा आनंद है, सच्चा संतुलन है.
नथिंगनेस ऑफ मनी की एक पहेली है. पहेली कुछ यूं है- अमीरों को वह चाहिए होता है, गरीबों के पास वह होता है, अगर तुम उसे खाओ, तो मर जाओ. और जब तुम मरते हो, तो उसे साथ ले जाते हो. वह क्या है? इस पहेली का जवाब है- कुछ नहीं! यानी अमीरों को ‘कुछ नहीं’ चाहिए होता. गरीबों के पास ‘कुछ नहीं’ होता. अगर तुम ‘कुछ नहीं’ खाओ, तो तुम मर जाते हो और जब तुम मरते हो तो अपने साथ ‘कुछ नहीं’ ले जाते हो.
जो लोग जीवन के इन रहस्यों को समझ जाते हैं वे संतुलित जीवन अपना लेते हैं. कई लोग सफलता की ऊंचाइयों को हासिल करने के साथ-साथ जीवन की सहजता को नहीं खोते. पश्चिमी समाजों में बड़ी संख्या में लोग कारोबारी सफलता पाने के बाद अध्यात्मिक जीवन की ओर बढ़ जाते हैं. हमारी संस्कृति में भी कर्मयोग के साथ-साथ ध्यानयोग की व्याख्या इसी का रूप है. यानी कर्म के साथ योगी का कल्चर हमें जीवन में संतुलन का महत्व समझाता है.
एक इंडियन कारोबारी हैं श्रीधर वेम्बू. भारत के अरबपतियों की सूची में 55वें नंबर पर हैं, आईटी क्षेत्र में सफल हैं, अपनी मल्टीनेशनल कंपनी चलाते हैं, दुनिया भर में दफ्तर हैं, हजारों कर्मचारी हैं, 18000 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं. लेकिन अमेरिका के चमकते शहर छोड़कर इंडिया के अपने गांव लौट आए. आज वह चेन्नई के पास स्थित अपने छोटे से गांव में रहते हैं. साइकिल से चलते हैं. बच्चों को पढ़ाते हैं. मस्त अंदाज में अपने गांव में घुमते हुए कहीं पेड़ों की छांव में लैपटॉप लेकर बैठे करोड़ों-अरबों की बिजनेस मीटिंग निपटाते कहीं भी मिल सकते हैं.
संदेश साफ है कि आपकी जिंदगी आपको आनंदित करने के लिए होनी चाहिए न कि आपको मशीन बनाने के लिए. जॉन एलिया ने अपनी शायरी में इसे दो टूक अंदाज में समझाया है-
'ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों को
अपने अंदाज़ से गँवाने का...'