Sunday 18 September 2022


 

एक पर्शियन कहावत है- जूते न होना मुझे सता रहा था लेकिन उस वक्त तक ही जब मैं बिना पैर के व्यक्ति से मिला.


भगवदगीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- धर्मक्षेत्रे, कर्मक्षेत्रे, समावेत: युयुत्सव:

अर्थात, यह संसार महाभारत के कुरुक्षेत्र की भांति कर्म के युद्ध का मैदान है. यहां कर्मयुद्ध तो करना ही पड़ेगा और कोई चारा नहीं है. यह दुनिया ऐसी ही है, यहां कमजोरी अभिशाप है. प्रकृति भी कमजोर जीवों को जिलाए रखने के पक्ष में नहीं होती. इसलिए कर्म निरन्तर जरूरी है... ताकि आत्मबल, शरीर बल और समाज बल बनाए रखा जा सके.

Saturday 17 September 2022

हर एक संकट का हल होगा...

श्रीकृष्ण कहते है-

लोहा जितना तपता है, 

उतनी ही ताकत भरता है...

सोने को जितनी आग लगे 

वो उतना प्रखर निखरता है

हीरे पर जितनी धार लगे 

वो उतना खूब चमकता है

मिट्टी का बर्तन पकता है,

तब धुन पर खूब खनकता है 

सूरज जैसा बनना है तो, 

सूरज जितना जलना होगा

नदियों सा आदर पाना है तो 

पर्वत छोड़ निकलना होगा

और हम आदम के बेटे हैं 

क्यों सोचें राह सरल होगा

कुछ ज्यादा वक्त लगेगा पर 

संघर्ष जरूर सफल होगा

हर एक संकट का हल होगा 

वो आज नहीं तो कल होगा...

बस कर्म तुम्हारा कल होगा,

और कर्म में अगर सच्चाई है 

तो कर्म कहां निष्फल होगा

हर एक संकट का हल होगा

आज नहीं तो कल होगा...


सफल होने का सबसे आसान तरीका है- हमेशा बार बार प्रयास करना... अपनी कमी को सही कर आगे बढ़ते रहने वाला ही शिखर पर पहुंचता है.

Thursday 15 September 2022

हर रात के बाद सुबह है, हर मुश्किल के बाद कुछ बेहतर है...

जिंदगी में हमेशा याद रखें- हर मुश्किल दौर जिंदगी में कुछ न कुछ सकारात्मक लाता है... हर मुश्किल वक्त कुछ सिखाता है, इंसान को टफ बनाता है और निखारता है. 1950 के दशक में, पोलैंड के मनोचिकित्सक काजीमिएर्ज दाब्रोवस्की ने दूसरे विश्वयुद्ध में बचे हुए लोगों पर शोध किया कि युद्ध के सदमे भरे अनुभव की उनके मन पर क्या छाप पड़ी?


यह शोध उन्होंने पोलैंड में किया था. वहां के हालात तो बहुत ही बुरे रहे थे. उन लोगों ने सैकड़ों लोगों को भूख से मरते देखा था, बम गिरने से शहरों को राख में तब्दील होते देखा था, लोगों को फांसी पर चढ़ते, कैदियों की यातना, परिवार के सदस्यों की हत्या/बलात्कार सब यातनाओं को झेला था. अगर वे नाजी सेना की यातना का शिकार होने से बच गए थे तो कुछ सालों बाद उन पर सोवियत ने चढ़ाई कर दी थी.


जब दाब्रोवस्की ने बचे हुए लोगों पर शोध किया तो उन्हें कुछ हैरानी भरी और कमाल की बात पता चली. काफी लोगों का मानना था कि युद्ध के अनुभव में हालांकि उन्होंने काफी दर्द और तकलीफें सही थीं, लेकिन उस अनुभव ने उन्हें बेहतर, ज्यादा जिम्मेदार और हां पहले से ज्यादा खुश रहना सिखाया था. बहुत से लोगों ने युद्ध से पहले के अपने जीवन को अलग बताया था. वे किसी की तारीफ नहीं करते थे, किसी से खुश नहीं थे, आलसी थे और छोटी-छोटी समस्याओं में घिरे रहते थे.


युद्ध के बाद उनमें एक विश्वास आया. वे खुद को लेकर ज्यादा निश्चित हो पाए. हर चीज का शुक्रिया करने लगे और अब छोटी-छोटी समस्याएं उन्हें परेशान नहीं करती थीं.


यकीनन युद्ध के उनके अनुभव भयानक रहे थे, और वे पीड़ित उनकी वजह से बिल्कुल भी खुश नहीं थे. बहुत से दिलों के जख्म अभी भी ताजा थे. लेकिन कुछ ने उन जख्मों का इस्तेमाल अपनी जिंदगी में शक्तिशाली तरीके से कर लिया था. इस परिवर्तन में वे अकेले नहीं थे. हममें से बहुत से लोग मुश्किल समय में अपना बेस्ट शॉट दे पाते हैं. हमारा दर्द अक्सर हमें मजबूत करता है, हमें ज्यादा लचीला और ज्यादा स्थिर बनाता है.

सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट...

  ओरिजिन ऑफ स्पेशिज में 'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट...' की अपनी थ्योरी लिखते हुए डार्विन लिखते हैं- 'हर प्राणी को खाने के लिए भोजन व ...